NATIONAL FOOD SECURITY ACT,2013 FULL TEXT

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झारखंड के स्कूलों में चला आज “अंडा अभियान”

भोजन का अधिकार, झारखंड के अंडा अभियान में आज झारखंड के 19 ज़िलों में बच्चों को स्कूल में अंडा खिलाया गया. यह अभियान झारखंड में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तुरंत क्रियान्वन की मांग को लेकर आयोजित किया गया था. यह कानून बच्चों को रोज़ स्कूल या आंगनवाड़ी के माध्यम से पौष्टिक भोजन व हर गर्भवती महिला को 6,000 रुपए के मातृत्व लाभ का अधिकार देता है. साथ ही साथ, इस कानून के अनुसार झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के 86 प्रतिशत परिवारों व शहरी क्षेत्रों के 58 प्रतिशत परिवारों को जन वितरण प्रणाली से सस्ता राशन मिलेगा.

मातृत्व हक के बिना कैसे अच्छे दिन!

सचिन कुमार जैन

वर्ष 2001 से 2011 के बीच हुई जनसंख्या वृद्धि के हिसाब से हर साल भारत में लगभग 1.9 करोड़ प्रसव होते हैं, मौजूदा मातृ मृत्यु अनुपात 178 है, जिसके हिसाब से हर साल लगभग 34 हज़ार महिलाएं प्रसव से संबंधित कारणों से अपना जीवन खो देती हैं। 

इतना ही नहीं विश्व बैंक के मुताबिक हर 190 में एक महिला की मृत्यु का कारण मातृत्व से संबंधित जोखिम होता है। इसका मतलब यह है कि हमारे यहां महिलाओं को उनके मौलिक मातृत्व हक नहीं मिल रहे हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून में 30 शब्दों में एक प्रावधान है, जो देश में 39 करोड़ महिलाओं, खासतौर पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली और अपने घरों को चलाने का बिना पारिश्रमिक वाला श्रम करने वाली महिलाओं को ऐसा हक देता है, जिसके बारे में सरकारें और समाज का रवैया उपेक्षा और भेदभाव से भरपूर रहा है। 

क्या बाली में एक हार की शुरुआत हुई है?

सचिन जैन 

मैं यहाँ हार-जीत का शब्द इस्तेमाल नहीं करता; पर जिस तरह डब्ल्यूटीओ की बाली बैठक में अमेरिका-यूरोपीय यूनियन के नेतृत्व में साम-दाम-दंड-भेद का खेल दुनिया की सरकारों ने खेला; उसमे तो हार-जीत का पुट है. प्रथम दृष्टया यह नज़र आता है कि वहां भारत सरकार जीत गयी, पर भारत के किसान और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के हकदार हार गए. सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि कुछ देशों का समूह (जी-33) एक साथ अपनी मांगें लेकर बाली गए थे, पर ऐसा लगता है कि आखिर में भारत और अमेरिका आमने-सामने बैठ कर समझौता करने लगे. एक मायने में क्या हम अपनी ईमानदार कूटनीतिक छवि के साथ भी समझौता नहीं कर आये? 3 से 6  दिसम्बर 2013 के दौरान जो हुआ, उसे इस देश के हर व्यक्ति को अभी ही जान लेना आवश्यक है; क्योंकि अगले अबसे पांचवे साल में इसका असर दिखने लगेगा जब सरकार खाद्य सुरक्षा पर अपने खर्चे को कम करने के लिए बाध्य होगी.

डब्ल्यूटीओ में भारत को झुकना क्यों नहीं चाहिए था..

सचिन जैन 

इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर 3 से 6  दिसम्बर 2013 तक विश्व व्यापार संगठन की बैठक हुई. दुनिया में भोजन के व्यापार और भोजन के अधिकार के सन्दर्भ में इस बैठक के कुछ कूटनीतिक महत्त्व भी थे. डब्ल्यूटीओ को अस्तित्व में आये अब बीस वर्ष होने जा रहे हैं, पर अब तक सभी 160 सदस्य देशों के बीच वैश्विक व्यपार के लिए एक भी सर्वसम्मत समझौता नहीं हो पाया है. कारण – अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ऐसे अनुबंध करवाना चाहते हैं, जिनसे पूरी दुनिया में उनके उत्पाद और उत्पादकों का नियंत्रण हो जाए. उनके लिए डब्ल्यूटीओ दूसरे देशों को अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने का जरिया है.

खाद्य सुरक्षा के व्यापार में हमने क्या बेंचा?

सचिन जैन 



डब्ल्यूटीओ की बाली बैठक में ६ दिसम्बर २०१३ को जिस समझौते के किये भारत सरकार राज़ी हो गयी, वह समझौता साफ़ संकेत देता है कि प्रभावशाली कूटनीतिक पूँजी की ताकत से सामने हम झुक गए. अब न तो भारत आसानी से न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा सकेगा, न ही खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों का ज्यादा विस्तार कर सकेगा. इतना ही नहीं बाली समझौते के मुताबिक अब उसे सभी जानकारियाँ विकसित देशों को देना होंगी. वास्तविकता यह है कि हमारी सरकार अब भी यह तय नहीं कर पा रही है कि विकसित देशों के लाभ के लिए हम अपनी ताकत यानी खेती को दाँव पर क्यों लगा रहे हैं?  खेती और खाद्य रियायत पर समझौता करने का मतलब था ६५ करोड किसानों और खाद्य सुरक्षा क़ानून के ८७ करोड लोगों के हकों को सीमित करने की शुरुआत; क्योंकि इस क़ानून के लागू होते ही खेती को दी जाने वाली सब्सिडी कृषि उत्पादन के १० फीसदी हिस्से से ऊपर निकल जाना निश्चित है. इस मामले पर बाली की बैठक शुरू होने के पहले ही जब भारत सरकार को डब्ल्यूटीओ से इन प्रस्तावित समझौता प्रावधानों का प्रारूप मिला, तभी से यह बहस शुरू हो गयी थी कि हमारी सरकार क्या इस बिंदु (जिसे पीस क्लाज़ कहा जा रहा था) के लिए सहमत होगी? 

क्या है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून

1.प्रस्‍तावनाएं 

यह कानून पूरे देश में 5 जुलाई 2013 से लागू माना जाएगा। (यह वही तारीख है, जिस दिन राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश लागू हुआ था)

2.हकदारियां

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
  •  प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्‍यक्‍ति पांच किलो अनाज हर महीने।
  •  अंत्‍योदय परिवार को महीने में 35 किलो राशन।
  •  दोनों को पात्र परिवार मानते हुए 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्‍या को कानून के दायरे में लाया गया है।
  •  इन्‍हें पीडीएस से 3 रु किलो चावल, 2 रु किलो गेहूं और 1 रुपए किलो के हिसाब से बारीक अनाज मिलेगा।

रोजी रोटी अधिकार अभियान ने खाद्य सुरछा अध्यादेश में संशोधन की मांग की.

राष्ट्रीय खाद्य सुरछा अध्यादेश में संशोधन की मांग  को लेकर अलग  अलग  सगठनों से जुड़े और अनेक राज्यों से आये लगभग 800 लोगों ने जंतर मंतर,दिल्ली  पर एक बड़े धरना प्रदर्शन में हिस्सा लिया। देश के विभिन्न राज्यों मध्य प्रदेश,राजस्थान,बिहार ,गुजरात,आसाम, जम्मू ,ओड़िशा ,महाराष्ट्र,पश्चिम बंगाल और दिल्ली  से आये किसान,बाल अधिकार से जुड़े सामजिक कार्यकर्ता,नरेगा मजदूर,महिला,दलित और आदिवासी संगठनों  के प्रतिनिधियों ने यह महसूस किया कि पिछले चार साल से  एक व्यापक खाद्य सुरछा कानून के लिए किया जा रहा संघर्ष एक कानून का रूप ले रहा है.वे इस बात से उत्साहित थे कि खाद्य सुरछा अध्यादेश  को आज लोक सभा में रख दिया गया.एक मजबूत खाद्य सुरछा  कानून के लिए चर्चा और बहस का यह पहला कदम है

मध्यान्ह भोजन योजना को बचाईये

सचिन कुमार जैन

बिहार कई कारणों से भारतीय जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. इस बार एक दुखद रूप में बिहार एक ऐसी योजना पर बहस का कारण बना, जिस पर देश आम तौर पर बहस करना छोटा काम समझता रहा है. बिहार के सारण जिले  धरमासती गंडामन गांव के नवसृजित प्राथमिक विधालय में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत दिए गए भोजन में जहर मिला होने के कारण २७ बच्चों की मृत्यु हो गयी और शायद जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे तब तक इस संख्या में कुछ बढौतरी होने की आशंका भी है. अखबारों, टी वी चैनलों और संवाद के हर मंच पर  मध्यान्ह भोजन योजना के बारे में जो चर्चा हो रही है, वह मुझे एक खतरनाक दिशा में जाती हुई लग रही है.

राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश के मुख्‍य बिंदु, पत्र सूचना कार्यालय,भारत सरकार


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्‍यादेश एक ऐतिहासिक पहल है जिसके जरिए जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। इसके जरिए लोगों को काफी मात्रा में अनाज वाजिब दरों पर पाने का अधिकार मिलेगा। खाद्य सुरक्षा विधेयक का खास जोर गरीब से गरीब व्‍यक्ति, महिलाओं और बच्‍चों की जरूरतें पूरी करने पर होगा। अगर लोगों को अनाज नहीं मिल पाया तो उन्‍हें खाद्य सुरक्षा भत्‍ता दिया जायेगा। इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्‍यवस्‍था है। अगर कोई जन सेवक या अधिकृत व्‍यक्ति इसका अनुपालन नहीं करेगा तो उसके खिलाफ शिकायत की सुनवाई हो सकेगी। इस विधेयक की अन्‍य खास बातें निम्‍नलिखित हैं-

माधुरी बहन का गांधीवादी प्रतिकार

आदिवासी बहुल बडवानी जिले में स्वास्थ कार्यकर्ताओं पर दमन का सिलसिला बदस्तूर  जारी है। आज  एक नाटकीय घटना क्रम में जागृत आदिवासी दलित संगठन की प्रमुख कार्यकर्ता माधुरी बहन ने, सन 2008 में दर्ज एक मामलें में जमानत लेने से इनकार कर दिया।उन्होंने बडवानी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में महात्मा गाँधी के चित्र को नमन करते हुए  मजिस्ट्रेट से कहा कि "महात्मा गाँधी ने कहा था कि  गुलाम देश के स्वतंत्र नागरिक की जगह जेल ही है, अतः वे भी उनके इस वाक्य का पालन  करते हुए, बजाय जमानत लेने के, जेल जाने का चुनाव कर रही हैं।इस पर उन्हें ३ मई तक खरगोन जेल भेज दिया गया।ज्ञातव्य है की बडवानी में महिला जेल नहीं है 

165 ग्राम अनाज का खाद्य सुरक्षा क़ानून

Photo by Zubair

Author: Sachin Kumar Jain

आप खुद ही सोच लीजिये क्या 165 ग्राम अनाज से भुखमरी और कुपोषण दूर होगा? पर भारत की सरकार ऐसा ही मानती है. खाद्य सुरक्षा में दालें और खाने का तेल शामिल नहीं है; क़ानून बन रहा है पर भ्रष्टाचार करने वालो के लिए इसमे लगभग खुली छूट है क्योंकि इसमे अपराध गैर-जमानती गंभीर अपराध नहीं है, फिर भले ही यह भूख-कुपोषण से मौत का कारण क्यों न बने; यह भूख से मुक्ति के बजाये कंपनियों के फायदे कमाने का बड़ा साधन बनेगा क्योंकि इसमे बच्चों के पोषण में ठेकेदारों के लिए खूब मौके दिए गए है. भ्रष्ट सरकार की मंशा सामने आ गयी है.