NATIONAL FOOD SECURITY ACT,2013 FULL TEXT

केन्द्र सरकार की मजदूर विरोधी नीति के खिलाफ (1 मर्इ से 7 मर्इ 2015 तक विरोध सप्ताह)




 प्रेस विज्ञप्ति 

केन्द्र सरकार की मजदूर विरोधी नीति के खिलाफ 1 मर्इ से 7 मर्इ 2015 तक विरोध सप्ताह
पटना, 30 अप्रैल, 2015

भोजन का अधिकार अभियान द्वारा देश के पूर्वी राज्यों- बिहार, झारखण्ड, प. बंगाल, छत्तीसगढ़, उड़ीसा में 1 मर्इ से 7 मर्इ तक केन्द्र की जन विरोधी नीतियों के विरोध में प्रतिरोध सप्ताह मनाया जा रहा है। इस अभियान में विभिन्न संगठन अपने बैनर के साथ शामिल हो रहे हैं।

बिहार के साथियों एवं संगठन के प्रतिनिधियों से अपील की जाती है कि 1 मर्इ मजदूर दिवस के अवसर पर एकजूट हों और अपने-अपने कार्यक्रमों के माध्यम से केन्द्र सरकार के मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें।

वर्ष 1886 में अमेरिका के हेमार्केट में अपने आठ घंटे की कार्यावधी की मांगे के लिए हड़ताल कर रहे मजदूरों की पुलिस द्वारा अंधाधुन फायरिंग कर उनकी हत्या की गर्इ। इस घटना के सवा सौ साल बाद भी मजदूर अपने हक के लिए लाठी-गोली खा रहे हैं। विभिन्न कानूनों के माध्यम से उन पर दमन जारी है। 

भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की नीतियाँ मजदूर विरोधी हैं। जिस प्रकार सरकार नीजी क्षेत्र को प्राकृतिक संसाधनों को लूट की अनुमति, भूमि अधिग्रहण तथा पुंजीपतियों को कर में छूट तथा सार्वजनिक क्षेत्र में निवेष में कटौती कर रही है उससे बेरोजगारी में वृद्धि होगी। बढ़ती आर्थिक विषमता से समाजिक असंतोष में वृद्धि होगी।

लगातार जन संघर्षों के बाद मजदूरों के हित में जो आधे-अधूरे नीतियाँ बनी उन्हें भी वर्तमान सरकार बदलना चाहती है। राजस्थान की भाजपा सरकार ने सर्वप्रथम मजदूरों के हित वाले कानून में नकारात्मक बदलाव किया है। इंडस्ट्रीयल डिस्प्यूट एक्ट के अंतर्गत 300 मजदूर क्षमता वाली कंपनियां बिना सरकार की अनुमति के कंपनी बंद कर मजदूरों का हटा सकती है। इसी आधार पर केन्द्र सरकार स्माल फैक्ट्री (रेगूलेषन आफ इम्प्लायमेन्ट एण्ड कंडीषन आफ सर्वीस) बिल 2014 ला रही है। इसके तहत द फैक्ट्री एक्ट, 1947, द इंडस्ट्रीयल इम्प्लायमेंट (स्टैडिंग आर्डर) एक्ट 1946, न्यूनतम मजदूरी कानून 1948, मजदूरी भुगतान कानून 1936, बोनस भुगतान कानून 1965, द इम्प्लार्इ स्टेट इंसुरेंस एक्ट 1948, द इम्प्लार्इ प्रोविडेंट फंड एण्ड मिसलेनियस प्रोविसन एक्ट 1952, मातृत्व लाभ कानून 1961, द इम्प्लार्इ कम्पेनसेषन एक्ट 1923, द इंटर स्टेट मार्इग्रेंट वर्कमेन (रेगुलेषन आफ इम्प्लायमेन्ट एण्ड कंडीषन आफ सर्वीस) एक्ट 1979, (राज्य) शाप एण्ड इस्टैबलीषमेन्ट एक्ट, द इक्वल रेमुनरेषन एक्ट 1976, द चार्इल्ड लेबर (प्रोहिबिषन एण्ड रेगुलेषन) एक्ट 1986 आयेंगे। ये सारे कानून उन फैक्ट्रीयों में नहीं लागू होंगे जहां 40 से कम मजदूर काम करते हैं।  अत: आज के जमाने में जहां टेक्नोलाजी का सहारा अधिक लिया जाता है वहां इन कानूनों के नहीं लागू होने से मजदूरों का अहित होगा।

बुष-मनमोहन परमााणु करार का भाजपा ने विरोध किया था परन्तु वर्तमान मोदी सरकार ने पहले से ही कमजोर परमाणु दायित्व विधेयक के सेक्षन 17 और सेक्षन 46 को नजरअंदाज करते हुये परमाणु करार पर मुहर लगा दी। इस कारार के अनुसार कोर्इ हादसा होने पर परमाणु रिएक्टर आपूर्तिकर्ता कंपनियां जिम्मेदार नहीं होंगी।

मनरेगा जैसे रोजगारपरक योजनाओं में पिछले वर्ष 2014-15 में 34000 करोड़ रुपये को भी पुरा खर्च नहीं किया जा सका। वर्तमान वितितय वर्ष 2015-16 में भी इतनी राषी ही तय की गर्इ है। इसमें पिछला बकाया शामिल नहीं है। पिछले वर्ष जिन मजदूरों का मजदूरी बकाया था तथा जो योजना अधूरा इन्हें पूरा नहीं किया जा सकेगा। यदि बढ़ती महंगार्इ, बकाया और कार्य मांग के आधार पर हिसाब लगाया जाए तो मनरेगा के लिए कम-से-कम 45000 करोड़ रुपये होना चाहिए। 

केन्द्र द्वारा ग्रामीण विकास विभाग, शहरी विकास विभाग, कृषि आदि की बजट में 20 प्रतिषत तक की कटौती किया जा रहा है। इससे मनरेगा तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित हो रहा है। श्रम आधारित कार्यक्रम मनरेगा में कटौती से ग्रामीण क्षेत्र के गरीब मजदूरों का अहित और ठेकेदारों को फायदा होगा। मनरेगा में श्रम-सामाग्री अनुपात को 60:40 की जगह 51:49 करने की बात की जा रही है। इस कार्यक्रम के तहत पंचायतों के विकास की योजनाओं के लिये देष भर में लगभग 30000 करोड़ रुपये बैठती है। वर्ष 2015-16 के बजट में मनरेगा के बजट में भारी कटौती की संभावना है साथ ही मनरेगा की की कवरेज भी कम करने की योजना बनायी जा रही है। ऐसा करने से महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति को नुकसान तो होगा ही खेती की उत्पादकता में भी कमी आएगी। 

ज़रा मनरेगा की उपलबिधयों पर गौर फरमाते हैं। वर्ष 2008-09 से 2013 तक ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार लगभग साढ़चार करोड़ से लेकर साढ़े पांच करोड़ तक गरीब ग्रामीण परिवारों को रोजगार मिला। यानी देष की कुल ग्रामीण परिवारों का लगभग 30 प्रतिषत। रोजगार पाने वालों में लगभग आधी संख्या महिलाओं की थी और कुल संख्या का पांचवा हिस्सा अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का था। 

इसके अलावे मनरेगा के और भी अन्य फायदे हुये हैं। जैसे- लगभग 2.5 अरब मानव-दिवस का मौसमी रोजगार प्रति वर्ष सृजित कर ग्रामीण इलाकों में छिपी हुर्इ बेरोजगारी या अंष-रोजगार (6.66 अरब मानव-दिवस) की समस्या लगभग 41 प्रतिषत हल हुर्इ। जहां-जहां सही अमल हुआ, वहां मनरेगा की वजह से ग्रामीण इलाकों से मजबूरन पलायन कम हुआ। मनरेगा की आमदनी से ग्रामीणों का क्रय शकित बढ़ने से गांवों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में वृद्धि हुर्इ। ग्रामीण महिलाओं के हाथों में पैसा आने से उनके कुपोषण की समस्या पर थोड़ा असर पड़ा।

षिक्षा व स्वास्थ्य जैसे सार्वजनिक मदों के खर्चे में कटौती कर नीजीकरण को बढ़ावा दे रही है। विŸािय वर्ष 2014-15 की तुलना में विŸािय वर्ष 2015-16 के बजट में सर्वषिक्षा अभियान में 28258 करोड़ से घटाकर 22000 करोड़ (लगभग 22 प्रतिषत), मध्याहन भोजन योजना में 13215 करोड़ से घटाकर 8900 करोड़ (लगभग 33 प्रतिषत), राष्ट्रीय माध्यमिक षिक्षा अभियान में 5000 करोड़ से घटाकर 3565 करोड़ (लगभग 29 प्रतिषत), समेकित बाल विकास सेवाओं में 18691 करोड़ से घटाकर 8754 करोड़ (लगभग 53 प्रतिषत), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन में 21912 करोड़ से घटाकर 18000 (लगभग 17 प्रतिषत), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 9954 करोड़ से घटाकर 4500 करोड़ (लगभग 55 प्रतिषत) रुपये की भारी कटौती की गर्इ है। (स्रोत: यूनियन बजट)

केन्द्र सरकार द्वारा गठित शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में अनुसंषा की है कि किसानों से अनाज का सीमित उठाव करना चाहिये। इससे किसानों को नुकसान होगा। कमीटी की रिपोर्ट के अनुसार एपीएल-बीपीएल को फिर से आधार बनाकर राषन वितरण किया जाना चाहिये। इसमें अन्त्योदया के लाभार्थी को छोड़कर शेष लाभार्थियों को खाधान्न मूल्य में वृद्धि करते हुये न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे मूल्य पर राषन देने की सिफारिष की गर्इ है। इसके अलावा कमीटी ने खाध सुरक्षा कानून के तहत लाभार्थियों की संख्या को 67 प्रतिषत से घटाकर 45 प्रतिषत करने की बात की है। यदि ऐसा होता है तो बड़ी संख्या में मजदूर और छोटे किसान खाध सुरक्षा के लाभ से वंचित हो जायेंगे। 

वर्तमान समय में मजदूरों को सम्मानजनक मजदूरी नहीं मिल पाता है। महंगार्इ और कर्ज की मार से गरीब, किसान आत्महत्या को मजबूर हैं। ऐसी सिथति में केन्द्र सरकार इनके मूंह से निवाला छिनने का प्रयास कर रही है। 

सरकार राजस्व प्रापित के स्रोतों व राजस्व दरों में वृद्धि के बजाए गरीबों के योजनाओं में कटौती कर रही है। सरकार कारपोरेट क्षेत्र तथा पूंजीपती घरानों को टैक्स में भारी छूट दे रही है। वर्ष 2013-14 में टैक्स छूट 5,49,984.1 करोड़ थी जो बढ़कर वर्ष 2014-15 में 5,89,285.2 करोड़ हो गर्इ। एक अनुमान के अनुसार यह कर माफी कुल कर राजस्व का 43.2 प्रतिषत है। 

हमारे देष में प्रत्यक्ष कर में अप्रत्यक्ष कर के मुकाबले लगातार कमी आ रही है। 100 रुपये में 30 रुपये प्रत्यक्ष कर से जबकि 70 रुपये अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त होता है। प्रत्यक्ष कर सकल घरेलु उत्पाद के अनुपात में वर्ष 2009-10 से ठहर गर्इ है जबकि अप्रत्यक्ष कर लगातार बढ़ रहा है। अप्रत्यक्ष कर के माध्यम से आम जनता से राजस्व इकटठा किया जाता है। इसके बावजूद उनके हित वाले योजना की राषि में कटौती की जा रही है। इसी कारण मंदी के बावजूद उपभोक्ता सामानों के दामों में अप्रत्याषित वृद्धि हुर्इ है।

केन्द्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 का संषोधन के लिये भूमि अधिग्रहण अध्यादेष 2014 लाया गया है। इसके दबाव में तत्कालीन सरकार ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गये दमनकारी 1894 के लगभग सवा सौ साल पश्चात लंबे संघर्षों के बाद 2013 में भूमि अधिग्रहण कानून बनाया (इसके समर्थम में भाजपा सांसदों ने भी वोट किया था) जिसमें किसानों की सहमति, सामाजिक असर मूल्यांकन, पुनर्वास-मुआवजे का सिद्धांत स्थापित किया था। वर्तमान सरकार ने इसे तोड़मरोड़ कर बरबाद कर दिया। 


भोजन का अधिकार अभियान (बिहार)
लोक परिषद, बिहार दलित अधिकार मंच (बिहार), एकता परिषद, जन स्वास्थ्य अभियान, बिहार प्रोग्रेसिव एलाएंस, बिहार विमेन्स नेटवर्क, बिहार महिला समाज, झुग्गी-झोपड़ी संघर्ष मोर्चा, लोक समिति, साझी आवाज, सी.ए.सी.एल., जन जागरण शकित संगठन, जल जमाव विरोधी संघर्ष समिति, एन.ए.पी.एम., मुसहर विकास मंच, बिहार वालंटरी फोरम फार एजुकेषन।