यह कानून झारखंड के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां कुपोषण के स्तर इतने अधिक हैं. पर दुःख की बात है कि झारखंड सरकार ने अभी तक इस कानून को लागू करने में बहुत कम रुची दिखाई है. जबकी एक ओर देश के कई राज्य इस कानून को लागू करने के लिए दिन रात महनत करके पात्र परिवारों का चयन कर रहे हैं, झारखंड बहुत पीछे है.
इस अभियान की यह भी मांग है कि स्कूल में बच्चों को नियमित रूप से अंडा मिले, व छोटे बच्चों के लिए आंगनवाड़ी में अंडा मिलना शुरू हो. झारखंड के अधिकतर ज़िलों के मध्याहन भोजन के मेन्यू के अनुसार बच्चों को हर शुक्रवार अंडा मिलना चाहिए. परन्तु, ज़्यादातर स्कूलों में बच्चों को हर सप्ताह अंडा नहीं मिलता.
हाल ही में राज्य सरकार ने बच्चों को सप्ताह में 2-3 दिन अंडा देने के लिए 192 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की है. यह अभियान इस निर्णय के तुरंत क्रियान्वन की मांग करता है.
रांची में यह अभियान हात्मा बस्ती के स्कूल में हुआ, जहां करीब 350 बच्चों व कुछ माताओं को अंडा खिलाया गया. इस स्कूल के बच्चों ने, जिन्हें एक महीने से मध्याहन भोजन में अंडा नहीं मिल रहा था, बहुत शौक से अंडा खाया. मौके पर मौजूद रांची विश्वविद्यालय के प्रोफ. रमेश शरण व State Commission for Protection of Child Rights की रूपलक्ष्मी मुंडा व सुनीता कात्यायन ने अभियान की मांगो का समर्थन किया.
तेज़ बारिश के बावजूद, बोकारो के पेटरवार प्रखंड में चांपी के 450 बच्चें अंडा खाने के लिए स्कूल आए.
लातेहार के अभियान का उद्घाटन मनिका के प्रखंड विकास अधिकारी व प्रखंड प्रमुख ने किया, जहां 200 बच्चों को अंडा खिलाया गया. अभियान में पास के गाँव के करीब 100 लोगों ने भी भाग लिया. अभियान में उपस्थित रांची विश्वविद्यालय के प्रोफ. ज्यां द्रेज़ ने कहाँ, “मध्याहन भोजन में अंडा बच्चों के लिए केवल पौष्टिक भोजन नहीं, परन्तु सामाज की उनके प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है”.
अंडा अभियान की फ़ोटो यहाँ देख सकते हैं: https://plus.google.com/