NATIONAL FOOD SECURITY ACT,2013 FULL TEXT

क्या बाली में एक हार की शुरुआत हुई है?

सचिन जैन 

मैं यहाँ हार-जीत का शब्द इस्तेमाल नहीं करता; पर जिस तरह डब्ल्यूटीओ की बाली बैठक में अमेरिका-यूरोपीय यूनियन के नेतृत्व में साम-दाम-दंड-भेद का खेल दुनिया की सरकारों ने खेला; उसमे तो हार-जीत का पुट है. प्रथम दृष्टया यह नज़र आता है कि वहां भारत सरकार जीत गयी, पर भारत के किसान और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के हकदार हार गए. सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि कुछ देशों का समूह (जी-33) एक साथ अपनी मांगें लेकर बाली गए थे, पर ऐसा लगता है कि आखिर में भारत और अमेरिका आमने-सामने बैठ कर समझौता करने लगे. एक मायने में क्या हम अपनी ईमानदार कूटनीतिक छवि के साथ भी समझौता नहीं कर आये? 3 से 6  दिसम्बर 2013 के दौरान जो हुआ, उसे इस देश के हर व्यक्ति को अभी ही जान लेना आवश्यक है; क्योंकि अगले अबसे पांचवे साल में इसका असर दिखने लगेगा जब सरकार खाद्य सुरक्षा पर अपने खर्चे को कम करने के लिए बाध्य होगी.

डब्ल्यूटीओ में भारत को झुकना क्यों नहीं चाहिए था..

सचिन जैन 

इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर 3 से 6  दिसम्बर 2013 तक विश्व व्यापार संगठन की बैठक हुई. दुनिया में भोजन के व्यापार और भोजन के अधिकार के सन्दर्भ में इस बैठक के कुछ कूटनीतिक महत्त्व भी थे. डब्ल्यूटीओ को अस्तित्व में आये अब बीस वर्ष होने जा रहे हैं, पर अब तक सभी 160 सदस्य देशों के बीच वैश्विक व्यपार के लिए एक भी सर्वसम्मत समझौता नहीं हो पाया है. कारण – अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ऐसे अनुबंध करवाना चाहते हैं, जिनसे पूरी दुनिया में उनके उत्पाद और उत्पादकों का नियंत्रण हो जाए. उनके लिए डब्ल्यूटीओ दूसरे देशों को अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने का जरिया है.

Amma Restaurants of Tamil Nadu Panacea for Urban Food Insecurity?

S Rajendran(Economic and Political Weekly)


The Tamil Nadu state government has started 283 subsidised restaurants - amma unavagams - in nine urban centres. This initiative has been a hit with a wide spectrum of urban consumers. However, the majority of the patrons seem to be the working urban poor. These initiatives have been accused of being "populist" but this model of providing affordable cooked food in urban areas promises to not only ensure food security but also keep food prices in check.

खाद्य सुरक्षा के व्यापार में हमने क्या बेंचा?

सचिन जैन 



डब्ल्यूटीओ की बाली बैठक में ६ दिसम्बर २०१३ को जिस समझौते के किये भारत सरकार राज़ी हो गयी, वह समझौता साफ़ संकेत देता है कि प्रभावशाली कूटनीतिक पूँजी की ताकत से सामने हम झुक गए. अब न तो भारत आसानी से न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा सकेगा, न ही खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों का ज्यादा विस्तार कर सकेगा. इतना ही नहीं बाली समझौते के मुताबिक अब उसे सभी जानकारियाँ विकसित देशों को देना होंगी. वास्तविकता यह है कि हमारी सरकार अब भी यह तय नहीं कर पा रही है कि विकसित देशों के लाभ के लिए हम अपनी ताकत यानी खेती को दाँव पर क्यों लगा रहे हैं?  खेती और खाद्य रियायत पर समझौता करने का मतलब था ६५ करोड किसानों और खाद्य सुरक्षा क़ानून के ८७ करोड लोगों के हकों को सीमित करने की शुरुआत; क्योंकि इस क़ानून के लागू होते ही खेती को दी जाने वाली सब्सिडी कृषि उत्पादन के १० फीसदी हिस्से से ऊपर निकल जाना निश्चित है. इस मामले पर बाली की बैठक शुरू होने के पहले ही जब भारत सरकार को डब्ल्यूटीओ से इन प्रस्तावित समझौता प्रावधानों का प्रारूप मिला, तभी से यह बहस शुरू हो गयी थी कि हमारी सरकार क्या इस बिंदु (जिसे पीस क्लाज़ कहा जा रहा था) के लिए सहमत होगी? 

Government Cracks Whip on Delays in NREGA Payments, Rs 5.17Lakhs Paid as Pending Wages and Compensation to Khunti Workers

Khunti (26 November 2013): In August this year, the Jharkhand Labour Commission passed a landmark order awarding compensation of Rs 2,000 per worker for delay and non-payment of wages in a work done under the National Rural Employment Guarantee Scheme of Murhigram panchayat in Khunti block. A total of 91 workers were paid pending wages and compensation money, amounting to a total of Rs5.17 lakhs.Of the 91 workers, 79 workers came to the Khunti block office today to receive the money. Four workers had died since working and the rest eight have either migrated in search of work or could not come because of ill health. Their money was collected by their family members. The compensation amount was recovered from the Block Development Officer, Block Programme Officer, RozgarSevak and Panchayat Sevak.