सचिन कुमार जैन
वर्ष 2001 से 2011 के बीच हुई जनसंख्या वृद्धि के हिसाब से हर साल भारत में लगभग 1.9 करोड़ प्रसव होते हैं, मौजूदा मातृ मृत्यु अनुपात 178 है, जिसके हिसाब से हर साल लगभग 34 हज़ार महिलाएं प्रसव से संबंधित कारणों से अपना जीवन खो देती हैं।
इतना ही नहीं विश्व बैंक के मुताबिक हर 190 में एक महिला की मृत्यु का कारण मातृत्व से संबंधित जोखिम होता है। इसका मतलब यह है कि हमारे यहां महिलाओं को उनके मौलिक मातृत्व हक नहीं मिल रहे हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून में 30 शब्दों में एक प्रावधान है, जो देश में 39 करोड़ महिलाओं, खासतौर पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली और अपने घरों को चलाने का बिना पारिश्रमिक वाला श्रम करने वाली महिलाओं को ऐसा हक देता है, जिसके बारे में सरकारें और समाज का रवैया उपेक्षा और भेदभाव से भरपूर रहा है।