Right to Food Campaign
(Secretariat)
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E 39, First Floor, Lajpat Nagar III,
New Delhi 110024, India ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Press Statement Issued by the
Right to Food Campaign on the National Food Security Bill on 6th May, 2013 at
the Press Club of India, N Delhi
The Right to
Food Campaign is deeply concerned at the paradox of hunger and malnutrition
preying on millions of people in this country even as FCI godowns continue to
overflow with grain. In this light, the campaign is chagrined that the
Government's flagship initiative in the form of the National Food Security Bill
(NFSB) is yet to be passed. This betrays the inhuman apathy of our rulers and
the system to the plight of the hungry and the malnourished dying a slow death.
The ruling Congress party had promised a food security bill in its manifesto
prior to the 2009 General Elections and this was also announced as one of the
priorities of the UPA government in the President's speech on 2nd June 2009. As
we come close to the end of the term of the 15th Lok Sabha, the Bill is yet to
be discussed in Parliament.
This delay of
almost four years in bringing the final version of the Bill into the Parliament
only last week, shows the lack of political will on the part of the UPA Government
towards ensuring food security for all and in particular pledging a commitment towards
actually eliminating hunger and malnutrition. With the Bill repeatedly delayed
and the Parliament not allowed to function, both the Government and the Opposition
are denying the people of this country the passage of a comprehensive Food
Security Law.
Despite all its
promises, the revised version of Bill placed on the floor of the Parliament on
2nd May 2013 makes a mockery of food security. It even undermines some of the
entitlements ensured by the Supreme Court of India in the right to food case. We earnestly hope that the Parliament conducts
business and that all Parties participate actively in debating, discussing and
passing a comprehensive Food Security Bill forthwith. However, we would like to
point out that current Bill provides extremely limited food entitlements and is
nowhere close to providing food security to the people of India that several important
parties, including the CPI, CPI (M), BJD, TMC with the exception of the BJP have
moved amendments.
According to the
campaign the final version of the Bill that has been introduced in Parliament by
the Food Minister Mr. KV Thomas needs serious amendments before passage as:
- It does not specify any time frame for the rolling out of the entitlements in the Bill.
- It continues with a Targeted PDS, excluding 33 % of the population from accessing the PDS as a right, giving scope to large exclusion errors of the poor in the country as a whole. The improved framework of single pricing in the present bill over the dual pricing under the existing APL-BPL system is undermined by the exclusion of a third of the country.
- While the ICMR norms recommend that an adult requires 14kgs of food grains per month and children 7kgs; the Bill provides for reduced entitlements to 5kgs per person per month, thus ensuring only 166 gms of cereal per person per day.
- The Bill provides only for cereals with no entitlements to basic food necessities such as pulses and edible oil required to combat malnutrition.
- The Bill continues to allow for the entry of private contractors and commercial interests in the supply of food in the ICDS, especially by insisting on specific norms related to Food Safety Acts and micronutrient norms (Note in Schedule 2).
- This bill is still ambiguous regarding maternal entitlements to all women, by continuing with the conditionality in the scheme of two child norm, which will penalise children of higher order as well as deny the mother of her basic rights.
- The Bill does not have a strong grievance redress mechanism. For the Bill to be effective there needs to be in place a strong, decentralized and independent grievance redress mechanism that includes district level grievance redress officers with powers to impose penalties on erring officials.
- The Bill does not provide any agriculture and production-related entitlements for farmers in spite of the fact that more than 60% of the people in this country are dependent on agriculture for their livelihoods. A revived and vibrant agriculture sector forms the backbone of food security.
The Right to
Food Campaign has been consistently demanding a comprehensive food security law
that incentivises agriculture production, provisions for local procurement and local
storage along with a decentralised and deprivatised universal PDS; along with special
entitlements for children, mothers, aged, disabled, widows, migrants and
destitute including universalised ICDS; monthly pensions, community kitchens and
destitute feeding programmes; effective measures for grievance redress,
transparency and accountability and safeguards against commercial interference
including GMs in any of the food/nutrition related schemes and against the
introduction of cash transfers in place of PDS.
We appeal to the
Parliament to discuss the NFSB; bring in suitable amendments to strengthen the
Bill (as given above) and pass a comprehensive food security Bill that includes
the above provisions. Three major Opposition Parties (CPM, CPI and BJD) have
already put in amendments asking for removal of targeting in the PDS. This must
not be delayed any further.
The National
Food Security Bill is a crucial opportunity to end hunger and malnutrition in
India and we hope that this will not be missed. The Right to Food Campaign will
continue to protest against a Bill that is so piecemeal in its approach and
mobilise for a comprehensive food security bill.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर रोज़ी रोटी अधिकार अभियान द्वारा जारी
वक्तव्य
६ मई २०१३, प्रेस क्लब आफ इंडिया, नई
दिल्ली
एक
तरफ तो करोड़ों टन अनाज भारतीय खाद्य निगान के गोदामों में भरा पड़ा है; दूसरी तरफ देश
में लाखों लोग भुखमरी और कुपोषण के साये
में जीवन बचाने की कठिन चुनौती से जूझ रहे हैं. रोज़ी रोटी अधिकार अभियान इस
विरोधाभासी स्थिति से चिंतित है. अभियान इस अवस्था में भी भारत सरकार की
महत्वपूर्ण पहल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के संसद में पारित न हो पाने से
व्यथित है. ऐसा लगता है कि हमारे नीति निर्माता भूख और कुपोषण से धीमी मौत मर रहे
लोगों के दुःख के प्रति अमानवीय रूप से असम्वेदनशील हो गए हैं.
सत्तारूढ़
कांग्रेस पार्टी ने वर्ष २००९ के लोकसभा चुनावों के दौरान अपने चुनावी घोषणा पत्र
में खाद्य सुरक्षा क़ानून बनाने का वायदा किया था और इसके साथ ही इसे २ जून २००९ को
राष्ट्रपति के भाषण में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की प्राथमिकता का विषय
घोषित किया गया था. अब हम १५ वीं लोकसभा के अंतिम दौर में आ चुके हैं पर इस विधेयक
पर अब भी संसद में चर्चा होना बाकी है.
राष्ट्रीय
खाद्य सुरक्षा विधेयक को अंतिम रूप देने में ४ वर्ष की देरी किये जाने और संसद में
पिछले हफ्ते ही प्रस्तुत किये जाने से पता चलता है कि इस विधेयक पर ही नहीं बल्कि
भुखमरी और कुपोषण मिटने की प्रतिबद्धता पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की
राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत कमज़ोर रही है. जिस तरह से इस विधेयक पर देरी की गयी है
और सरकार-विपक्ष ने मिल कर संसद की कार्यवाही को अवरुद्ध किया है, उससे देश के लोग
खाद्य सुरक्षा के कानूनी अधिकार से वंचित हुए हैं.
तमाम
वायदों के उपरान्त, २ मई २०१३ को विधेयक का जो संशोधित रूप संसद के पटल पर रखा
गया, वह खाद्य सुरक्षा का मजाक उडाता है. यह विधेयक मौजूदा रूप में भारत के
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भोजन के अधिकार प्रकरण में दिए गए हकों को विस्तार देने
के बजाये, सीमित और नज़रअंदाज़ करता है. हम विश्वास करते हैं कि संसद की कार्यवाही
सहज ढंग से चलेगी और सभी राजनीतिक दल गंभीरता से इस विधेयक पर बहस और चर्चा करके एक व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा
विधेयक को तत्काल पारित करेंगे. हांलाकि हम यह उल्लेख करना चाहते है कि संशोधित
वर्तमान विधेयक बहुत ही सीमित खाद्य अधिकारों की बात करता है. यह देश के लोगों को
खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं करेगा. इस विधेयक में सीपीआई, सीपीआई (एम्), बीजेडी
द्वारा प्रस्तुत संशोधनों को भी शामिल नहीं किया गया है. भाजपा ने कोई संशोधन की
प्रस्तुत नहीं किये.
अभियान
मानता है कि खाद्य मंत्री श्री के वी थामस द्वारा संसद में प्रस्तुत विधेयक में
गंभीर सुधारों और बदलावों की जरूरत है; जैसे -
- इसमे उल्लेख नहीं है कि हकों की उपलब्धता और विस्तार कितने समय में कर दिया जाएगा.
- खाद्य सुरक्षा को लोकव्यापीकरण को दरकिनार करते हुए, यह अब भी लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करने की बात करता है, यानि ३३% जनसँख्या को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है. इससे देश में पात्र लोगों के पहचान की विसंगतियाँ बनी रहेंगी, जिससे गरीब अपने अधिकारों से वंचित बने रहेंगे. एपीएल – बीपीएल के दो दामों की व्यवस्था पर एक दाम पर अनाज देने की संशोधित व्यवस्था बहिष्कार के तीसरे कारक के कारण कमज़ोर पड़ जायेगी.
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के मानकों के मुताबिक एक वयस्क को १४ किलो प्रतिमाह और बच्चे को ७ किलो प्रतिमाह अनाज की जरूरत होती है; परन्तु मौजूदा विधेयक एक व्यक्ति के लिए केवल ५ किलो अनाज का प्रावधान करता है यानी केवल १६६ ग्राम अनाज प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन;
- विधेयक केवल अनाज के प्रावधान करता है; कुपोषण से निपटने के लिए बुनियादी जरूरत है कि लोगों को दालें और खाने का तेल मिले.
- विधेयक एकीकृत बाल विकास परियजना में फ़ूड सेफ्टी क़ानून और सूक्ष्म पोषक तत्वों से सम्बंधित कुछ खास किस्म के मानकों के उल्लेख के जरिये निजी ठेकेदारों और व्यावसायिक हितों को साधने वालों के लिए नए दरवाज़े खोलता है. (अनुसूची दो);
- यह विधेयक मातृत्व हकों के बारे में अस्पष्ट है क्योंकि इसमे यह कहा गया है कि सभी महिलाओं को अधिकार मिलेगा परन्तु दो बच्चों के संख्या की शर्त भी जोड़ी गयी है. इससे बच्चों के जीवन और विकास के अधिकार के साथ साथ महिलाओं के बुनियादी अधिकार भी सीमित हो जायेंगे.
- इस विधेयक में ठोस शिकायत निवारण व्यवस्था नहीं है. इस क़ानून को प्रभावी बनाने के लिए एक ठोस, विकेन्द्रीकृत, और स्वतंत्र शिकायत निवारण व्यवस्था तंत्र की जरूरत है, जिसमें जांच करके गलती करने वाले अधिकारियों को दण्डित करने के अधिकार से संपन्न जिला स्तर पर शिकायत निवारण प्राधिकारी की नियुक्ति की व्यवस्था होना चाहिए.
- यह विधेयक कृषि और खाद्यान्न उत्पादन सम्बन्धी कोई भी अधिकार या प्रोत्साहन किसानों को उपलब्ध नहीं करवाता है, जबकि देश की ६० प्रतिशत जनसँख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है. एक पुनर्जीवित और सशक्त कृषि क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है.
रोज़ी
रोटी अधिकार अभियान लगातार एक ऐसे व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून की मांग
करता रहा है जो खाद्यान्न उत्पादन को प्रोत्साहित करे, जिसमे स्थानीय खरीदी और
भण्डारण की व्यवस्था के साथ साथ विकेन्द्रीकृत और अनिजिकृत लोकव्यपिकृत सार्वजनिक
वितरण प्रणाली हो; जिसमे बच्चों, माताओं, वृद्धों, विकलांगों, विधवाओं, पलायन करने
वालों और निराश्रितों के लिए विशेष प्रावधान हों; लोकव्यपिकृत आईसीडीएस हो; मासिक
पेंशन हो; सामुदायिक रसोई और निराश्रितों के लिए भोजन कार्यक्रम हो; शिकायत
निवारण, पारदर्शिता, जवाबदेहिता के लिए ठोस और समयबद्ध प्रावधान हों; इसके साथ ही
आर्थिक हितों के लिए इसके उपयोग की संभावनाओं के खिलाफ ठोस व्यवस्था हो और
सुनिश्चित किया जाए कि इसमे जीएम् तकनीक को प्रोत्साहन न दिया जाए; यह भी स्पष्ट
होना चाहिए कि पीडीएस में नकद हस्तांतरण की व्यवस्था जोड़ कर इस क़ानून और खेती को
कमज़ोर नहीं किया जाएगा.
हम
संसद का आह्वान करते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर चर्चा हो; ऊपर
उल्लिखित मांगों के आधार पर सही संशोधन इसमे किये जाएँ; और एक ऐसा व्यापक खाद्य
सुरक्षा विधेयक पारित किया जाए जिसमे उपरोक्त प्रावधान शामिल हों; तीन महत्वपूर्ण
विपक्षी राजनीतिक दलों (सीपीआई, सीपीआई
(एम्), बीजेडी) ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लोक्व्यापिकृत करने की मांग की है,
इस मांग को मानते हुए संशोधन लाने में और देरी नहीं होना चाहिए.
भारत
में कुपोषण और भुखमरी को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून एक
महत्वपूर्ण संभावना है, इसे गंवाया नहीं जाना चाहिए. रोज़ी रोटी अधिकार अभियान एक
ऐसे विधेयक के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेगा जो टुकड़ों में बात करता हो और हम एक
व्यापक क़ानून के लिए एकजुट होकर संघर्ष करते रहेंगे.
We are,
Kavita Srivastava on behalf of the Steering Committee
of the Right to Food Campaign
Annie Raja (National
Federation for Indian Women), Anuradha Talwar and Gautam Modi (New Trade Union
Initiative), Arun Gupta and Radha Holla (Breast Feeding Promotion Network of
India), Arundhati Dhuru and Ulka Mahajan (National Alliance of People’s
Movements), Asha Mishra and Vinod Raina (Bharat Gyan Vigyan Samiti), Aruna Roy,
Anjali Bharadwaj and Nikhil Dey (National Campaign for People's Right to
Information), Ashok Bharti (National Conference of Dalit Organizations), Colin
Gonsalves (Human Rights Law Network), G V Ramanjaneyulu (Alliance for
Sustainable and Holistic Agriculture), Kavita Srivastava and Binayak Sen
(People’s Union for Civil Liberties), Lali Dhakar, Sarawasti Singh, Shilpa Dey
and Radha Raghwal (National Forum for Single Women’s Rights), Mira Shiva (Jan
Swasthya Abhiyan), Paul Divakar and Asha Kowtal (National Campaign for Dalit
Human Rights), Prahlad Ray and Anand Malakar (Rashtriya Viklang Manch), Subhash
Bhatnagar (National Campaign Committee for Unorganized Sector workers)
Veena Shatrugna, M
Kodandram and Rama Melkote (Andhra Pradesh), Saito Basumaatary and Sunil Kaul
(Assam), Rupesh (Bihar), Gangabhai and Sameer Garg (Chhattisgarh), Pushpa,
Dharmender, Ramendra, Yogesh, Vimla and Sarita (Delhi), Sejal Dand and Sumitra
Thakkar (Gujarat), Abhay Kumar and Clifton (Karnataka), Balram, Gurjeet Singh
and James Herenj (Jharkhand), Sachin Jain (Madhya Pradesh), Mukta Srivastava
and Suresh Sawant (Maharashtra), Tarun Bharatiya (Meghalaya), Chingmak Chang
(Nagaland) Bidyut Mohanty and Raj Kishore Mishra, Vidhya Das, Manas Ranjan (Orissa),
Ashok Khandelwal, Bhanwar Singh and Vijay Lakshmi (Rajasthan), V Suresh (Tamil
Nadu), Bindu Singh (Uttar Pradesh), Fr. Jothi SJ and
Mr. Saradindu Biswas (West Bengal)