राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून और
उससे आगे
भोजन का अधिकार, लोकतंत्र और सामाजिक
न्याय
देश के 15 राज्यों से विभिन्न
सामाजिक संगठनों, जनसंगठनों, संस्थाओं और समुदाय के 2000 से ज्यादा लोग
जो रोज़ी रोटी अधिकार अभियान के सदस्य के रूप में लोक अधिकारों, लोकतंत्र और
सामाजिक न्याय पर केंद्रित पांचवे अधिवेशन में सम्मिलित हुए, सामाजिक समानता, शोषण
से मुक्ति, बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करने और बेहतर समाज की स्थापना के लिए चल
रहे सभी अहिंसात्मक जमीनी जनसंघर्षों और आन्दोलनों के प्रति अपनी एकजुटता प्रकट
करते हैं।
हम सब, समाज के
मसलों और समस्याओं, जैसे सूचना के अधिकार, जवाबदेयता की मांग, भ्रष्टाचार, भूमि
अधिग्रहण, श्रमिकों का शोषण करने और वंचित तबकों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाली
नीतियों की खिलाफत करते हुए अपने जीवन की आहूति देने वाले सभी संघर्षशील साथियों
की शहादत को नमन करते हैं।
हम बहुत व्यथित
होकर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव, कुपोषण, सतत भुखमरी के शिकार होकर मर जाने वाले
बच्चों, महिलाओं, पुरुषों और तीसरे लिंग वाले समुदायों के प्रति संवेदना और दुःख व्यक्त
करते हैं। हम मानते हैं कि मातृत्व सेवाओं का अभाव महिलाओं का जीवन खत्म कर देता
है। इन सबको को बचाया जा सकता है।
हम उन सभी मेहनतकश
हजारों किसानों के प्रति भी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने शोषणकारी
नीतियों के खिलाफ अपनी आजीविका को बचने का संघर्ष करते हुए आत्महत्या करना पड़ी,
साथ की उन लोगों को भी श्रद्धांजलि, जिन्होंने साम्प्रदायिक और जातिगत हिंसा में
अपना जीवन खो दिया।
हम इस बात की
निंदा करते हैं कि देश की आजादी के 67 साल बाद भी आबादी को भोजन, पोषण, स्वास्थ्य,
शिक्षा, आजीविका, सामाजिक सुरक्षा, शांति और सामाजिक न्याय जैसे बुनियादी हक भी
उपलब्ध नहीं हैं।
हम दलितों,
अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, महिलाओं, निशक्तजनों और तीसरे लिंग के लोगों के साथ
लगातार हो रहे भेदभाव की भी निंदा करते हैं।
देश के
लोकतंत्र में जिस तरह असहमति व्यक्ति करने वालों, जनआन्दोलनों और गरीब समर्थक नीति
निर्माण के लिए संघर्ष करने वालों को जिस तरह से दबाया जा रहा है, उससे हम बहुत
चिंतित हैं। यहाँ तक कि किसानों, मजदूरों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों,
छात्रों, युवाओं, लैंगिक अल्पसंख्यकों सहित सभी तबकों के अहिंसक-शांतिपूर्ण जनआन्दोलनों
और अधिकार मांगने वाले मेहनतकश लोगों को भी राज्य बहुत ही ताकतवर और क्रूर तरीके
से कुचल रहा है। भारतीय लोकतंत्र में विरोध और असहमति व्यक्त करने के लिए दायरा
सीमित हो रहा है, इसके हम भोजन के अधिकार, लोकतंत्र की मजबूती और सामाजिक न्याय के
प्रति अपना संघर्ष जारी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
हम पितृसत्तात्मक
व्यवस्था और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध चल रहे संघर्षों और जनसमर्थक
लोकतान्त्रिक राजनीतिक ताकतों के रूप में संघर्ष कर रहे सहित सभी आन्दोलनों के साथ
खड़े होने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
हम डब्ल्यूटीओ,
मुक्त व्यापार समझौतों, अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों और फसलों पर जीएम
तकनीक के प्रयोगों को अनुमति दिए जाने की भर्त्सना करते हैं, जिनके माध्यम से देश
की खाद्य संप्रभुता की व्यवस्था और संभावनाओं को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
नवउदार
पूंजीवाद, भ्रष्ट शासन व्यवस्था, लोकतान्त्रिक मूल्यों को खत्म करने के प्रयासों,
प्रकृति संसाधनों की बेशर्म लूट और नागरिक संगठनों–जन संघर्षों का गला घोंटने की
सरकारों की लगातार चल रही कोशिशों के परिणाम स्वरुप ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मज़बूत
इमारत खंडहर हो गयी है और सरकार पर से लोगों का भरोसा उठता गया है। आजादी के बाद
अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ।
अमीरों के
उपभोग के लिए लोगों के आजीविका के संसाधनों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी के नाम पर
सामुदायिक संपत्तियों को छीने जाने और कारपोरेट समूहों के लाभ के लिए देश की
सम्पदा प्राकृतिक संसाधनों को बांटे जाने की नीतियों और कामों की कड़ी भर्त्सना
करते है।
हम “गुजरात के कथित विकास माडल” को पूरी तरह से खारिज करते हैं, जिस पर
देशवासियों को भरोसा करने को कहा जा रहा है। हम मानते है कि “गुजरात के शोषणकारी विकास माडल” ने असमानता को और बढ़ाया है, साथ ही
नवउदार पूंजीवादी व्यवस्था के साथ-साथ पितृसत्तात्मक ताकतों को भी ज्यादा मजबूत किया
है। इसके अलावा यह गरीब और हाशियों पर खड़े समुदायों के विरोध को कुचलेगा; हमारे
देश के धर्मनिरपेक्ष-लोकतान्त्रिक–जनकल्याणकारी ताने-बाने को नेस्तनाबूत कर देगा।
हम ऐसी ताकतों के खिलाफ और वर्ष २००२ में हुए एक खास अल्पसंख्यक समुदाय के नरसंहार
के मामले में गुजरात में चल रहे संघर्षों और आन्दोलनों के साथ एकजुट रहने और
संघर्ष में उनके साथ रहने की घोषणा करते हैं।
हम सभी मेहनतकश
उत्पादकों और निर्माणकर्ताओं, जिनमें महिला किसान, आदिवासी, दलित, खेतिहर मजदूर और
छोटे-मझौले किसान, छोटे पशुपालक, सीमान्त किसान, मछुआरे, कारीगर और अन्य मेहनतकश
लोग शामिल हैं और जिन्होंने खेती की
व्यवस्था को संरक्षित किया है, को हम देश की किसान आधारित खाद्य सुरक्षा और
संप्रभुता व्यवस्था की रीढ़ मानते हैं। ये ही हमारे जन संघर्ष की मूल ताकत हैं।
हम दृढ
संकल्पित हैं कि सभी मेहनतकश वर्गों के इज्ज़त से जीवन जीने के लिए आवश्यक वेतन,
काम की सुरक्षा, बेहतर और शोषण मुक्त मानवीय कार्य-दशाएं, श्रम क़ानून के कठोर क्रियान्वयन
और सामाजिक सुरक्षा (जिसमें पेंशन, मातृत्व लाभ, स्वास्थ्य सेवा समाहित है) हेतु
प्रभावी कानूनी अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष करेंगे और इस मंतव्य से चल
रहे संघर्षों को अपना समर्थन देंगे।
हम इस बात की
अपनी दृढ़ मान्यता दोहराते है कि खाद्य सुरक्षा को केवल खाद्य संप्रभुता से ही
प्राप्त किया जा सकता है।
हम सभी
कामगारों के लिए उचित मजदूरी, सम्मानजनक सामाजिक सुरक्षा और संगठन बनाने के अधिकार
के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं।
हम सभी बच्चों,
किशोर-किशोरियों, वंचित और कमजोर समूहों के उन अधिकारों के लिए अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता
एक बार फिर मजबूती से दोहराते हैं, दृढ निश्चय व्यक्त करते हैं, जिसमें सभी बच्चों,
पुरुषों, महिलाओं और तीसरे लिंग से सम्बंधित लोगों को पर्याप्त, विविधता और गुणवत्तापूर्ण
पोषक भोजन सहित अनिवार्य सेवाएं मिलना चाहिए।
हम मानते हैं
कि कई राज्यों में अभियान के लगातार संघर्ष और समन्वित प्रयासों के चलते लोगों के
बुनियादी अधिकारों (जैसे रोजगार गारंटी, व्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली, स्कूलों
में मध्यान्ह भोजन, लोकव्यापिकृत आईसीडीएस, मातृत्व लाभ और सामाजिक सुरक्षा पेंशन
आदि) को हासिल करने में उल्लेखनीय सफलता मिली है। यह संघर्ष हमें उर्जा भी देता है।
हम मांग करते
हैं कि प्राकृतिक आपदाओं, सांप्रदायिक-जातिगत हिंसा एवं विस्थापन से प्रभावित
लोगों की आजीविका और पोषण सहित खाद्य सुरक्षा का हक सुनिश्चित किया जाए।
हम प्रतिरोध के
साथ याद करते हैं दक्षिण एशिया खासतौर पर; मध्य और उत्तर-पूर्वी भारत, कश्मीर
घाटी, उत्तरी श्रीलंका, पाकिस्तान और युद्धग्रस्त अफगानिस्तान आदि क्षेत्रों के उन
लोगों को जिनकी जिंदगियां टकराव और हिंसा ने छीन ली. हम मानते हैं कि टकराव वाले
क्षेत्रों में गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति है, जिसका समाधान किये जाने की
अनिवार्य जरूरत है. हम पुनः दृढ़ता के साथ यह बात व्यक्त करते हैं कि इन क्षेत्रों
में सामान्य स्थिति बहाल करने में शांति, न्याय और पर्याप्त और पोषक भोजन तक पंहुच
अनिवार्य कारक है. खाद्य सुरक्षा के अधिकार को संरक्षित करने के लिए शान्ति
अनिवार्य है. इस क्षेत्र में शांति बहाल करने, नागरिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने,
लोकतान्त्रिक तरीकों से संघर्ष-प्रदर्शन करने और टकराव को खत्म करने के लिए स्थान
सुरक्षित होना चाहिए. इन इलाकों में क़ानून का राज स्थापित हो और क्षेत्रों को
सैनिक छाँवनियों से मुक्त किया जाए.
हम लोगों के
भोजन और अन्य संबधित हकदारियों के लिए एकजुट संघर्ष के अभियान को जारी रखने की
प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं, साथ ही खाद्य संप्रभुता और जल-जंगल-जमीन जैसे
संसाधनों के संरक्षण, किसानों और कृषि के संरक्षण, वंचित समूहों के मुद्दों और
लोकतंत्र को सुरक्षित करने की दिशा में अभियान को आगे ले जाने का संकल्प लेते हैं।
हम भोजन के
अधिकार को हासिल करने के लिए चल रहे वैश्विक आन्दोलनों और साथ एकजुटता अभिव्यक्त
करते हैं और भोजन के अधिकार के लिए दक्षिण एशियाई आंदोलन के लिए काम करने का
निर्णय लेते हैं।