1.प्रस्तावनाएं
यह कानून पूरे देश में 5 जुलाई 2013 से लागू माना जाएगा। (यह वही तारीख है, जिस दिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू हुआ था)
2.हकदारियां
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
बच्चों की हकदारियां
गर्भवती और धात्रि माताओं की हकदारी
आंगनवाड़ी से एक बार मुफ्त भोजन (गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के 6 माह बाद तक)। साथ में किस्तों में 6000 रुपए की मातृत्व सहायता।
{नोट : (1) यहां भोजन का मतलब गर्म पका खाना या पका-पकाया खाना, जिसे परोसने से पहले गर्म किया जाए या घर ले जाने वाला राशन है – केंद्र सरकार की सिफारिशों के अनुसार। भोजन कानून की अनुसूची 2 के अनुसार पोषण मानकों के अनुसार होगा। (2) महिलाओं और बच्चों की हकदारियां केंद्र के दिशा-निर्देशों पर चलाई जा रहीं योजनाओं के तहत राज्य सरकार देगी। }
3.पात्र परिवारों की पहचान
पीडीएस के हकदार परिवारों की पहचान के लिए कानून में कोई मापदंड तय नहीं किए गए हैं। केंद्र सरकार पहले राज्यों में पीडीएस का कवरेज (ग्रामीण/शहरी आबादी का अनुपात) निर्धारित करेगी। फिर पात्र परिवारों की गणना जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होगी। पात्र परिवारों की पहचान का काम राज्यों पर छोड़ा गया है, जो अंत्योदय योजना के मार्गनिर्देश और प्राथमिकता परिवारों के लिए राज्य सरकारों द्वारा ‘निर्दिष्ट’ दिशानिर्देशों के अनुरूप होगा। पात्र परिवारों की पहचान 365 दिन में करनी होगी। इन परिवारों की सूची को प्रमुखता के साथ सार्वजनिक भी करना होगा।
4.खाद्य सुरक्षा आयोग
कानून में राज्यों के स्तर पर खाद्य सुरक्षा आयोग बनाने की बात है। इसका प्रमुख काम-
5. शिकायत निवारण और पारदर्शिता
दो स्तरीय ढांचा :जिला स्तरीय शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ) और राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग।
जिला स्तरीय शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ)
राज्य सरकार हर जिले में डीजीआरओ नियुक्त करेगी। ये शिकायतों को सुनकर सरकार के मापदंडों पर कार्रवाई करेंगे। यदि शिकायतकर्ता इससे संतुष्ट नहीं हो तो वह राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग को शिकायत कर सकता है।
दंड और मुआवजा
राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग को दंड देने का अधिकार होगा। डीजीआरओ का आदेश न मानने वाले अधिकारी पर 5000 रु तक जुर्माना। आयोग अपने किसी भी सदस्य को इसके लिए न्यायकर्ता बना सकता है।
अगर हितग्राही परिवार को उसकी हकदारी का अनाज नहीं मिले तो उसे राज्य सरकार से केंद्र द्वारा निर्धारित खाद्य सुरक्षा भत्ता मिलेगा।
6.अन्य प्रावधान
पीडीएस में सुधार
अध्याय 5 : केंद्र व राज्य सरकारें पीडीएस में सुधार के लिए कदम उठाएंगी। जैसे –
सरकार और स्थानीय प्रशासन के कर्त्तव्य
7.अनुसूचियां
कानून में चार अनुसूचियां हैं (इन्हें अधिसूचनाओं के जरिए संशोधित किया जा सकता है)।
यह कानून पूरे देश में 5 जुलाई 2013 से लागू माना जाएगा। (यह वही तारीख है, जिस दिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू हुआ था)
2.हकदारियां
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
- प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज हर महीने।
- अंत्योदय परिवार को महीने में 35 किलो राशन।
- दोनों को पात्र परिवार मानते हुए 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को कानून के दायरे में लाया गया है।
- इन्हें पीडीएस से 3 रु किलो चावल, 2 रु किलो गेहूं और 1 रुपए किलो के हिसाब से बारीक अनाज मिलेगा।
बच्चों की हकदारियां
- 6 माह-6 साल : आंगनवाड़ी से उम्र के मुताबिक मुफ्त भोजन।
- 6-14 साल : सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 8 तक रोजाना एक बार मुफ्त मध्यान्ह भोजन (स्कूल की छुट्टी होने पर नहीं)
- 6 माह से छोटे बच्चे : विशिष्ट स्तनपान को बढ़ावा
- कुपोषित बच्चे : आंगनवाड़ी में निशुल्क भोजन
गर्भवती और धात्रि माताओं की हकदारी
आंगनवाड़ी से एक बार मुफ्त भोजन (गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के 6 माह बाद तक)। साथ में किस्तों में 6000 रुपए की मातृत्व सहायता।
{नोट : (1) यहां भोजन का मतलब गर्म पका खाना या पका-पकाया खाना, जिसे परोसने से पहले गर्म किया जाए या घर ले जाने वाला राशन है – केंद्र सरकार की सिफारिशों के अनुसार। भोजन कानून की अनुसूची 2 के अनुसार पोषण मानकों के अनुसार होगा। (2) महिलाओं और बच्चों की हकदारियां केंद्र के दिशा-निर्देशों पर चलाई जा रहीं योजनाओं के तहत राज्य सरकार देगी। }
3.पात्र परिवारों की पहचान
पीडीएस के हकदार परिवारों की पहचान के लिए कानून में कोई मापदंड तय नहीं किए गए हैं। केंद्र सरकार पहले राज्यों में पीडीएस का कवरेज (ग्रामीण/शहरी आबादी का अनुपात) निर्धारित करेगी। फिर पात्र परिवारों की गणना जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होगी। पात्र परिवारों की पहचान का काम राज्यों पर छोड़ा गया है, जो अंत्योदय योजना के मार्गनिर्देश और प्राथमिकता परिवारों के लिए राज्य सरकारों द्वारा ‘निर्दिष्ट’ दिशानिर्देशों के अनुरूप होगा। पात्र परिवारों की पहचान 365 दिन में करनी होगी। इन परिवारों की सूची को प्रमुखता के साथ सार्वजनिक भी करना होगा।
4.खाद्य सुरक्षा आयोग
कानून में राज्यों के स्तर पर खाद्य सुरक्षा आयोग बनाने की बात है। इसका प्रमुख काम-
- खाद्य सुरक्षा कानून के अमल पर नजर रखना, राज्य सरकार और उसकी एजेंसियों को सलाह देना और हकदारियों के उल्लंघन की जांच करना।
- जिला स्तरीय शिकायत निवारण अधिकारी के आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई करना और वार्षिक रिपोर्ट बनाना।
5. शिकायत निवारण और पारदर्शिता
दो स्तरीय ढांचा :जिला स्तरीय शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ) और राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग।
राज्यों को शिकायतों के आंतरिक निवारण के लिए भी एक प्रणाली बनानी होगी, जैसे कॉल सेंटर, हेल्प लाइन आदि।
पारदर्शिता के लिए ये तो होने ही चाहिए –
पारदर्शिता के लिए ये तो होने ही चाहिए –
- पीडीएस के सारे रिकार्ड को सार्वजनिक किया जाएगा।
- पीडीएस और बाकी कल्याणकारी योजनाओं का समयबद्ध सोशल ऑडिट।
- सभी स्तरों पर लेन-देन को दर्ज करने के लिए सूचना तकनीक का उपयोग।
- कानून के तहत सभी योजनाओं पर नजर रखने के लिए सतर्कता समितियां।
जिला स्तरीय शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ)
राज्य सरकार हर जिले में डीजीआरओ नियुक्त करेगी। ये शिकायतों को सुनकर सरकार के मापदंडों पर कार्रवाई करेंगे। यदि शिकायतकर्ता इससे संतुष्ट नहीं हो तो वह राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग को शिकायत कर सकता है।
दंड और मुआवजा
राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग को दंड देने का अधिकार होगा। डीजीआरओ का आदेश न मानने वाले अधिकारी पर 5000 रु तक जुर्माना। आयोग अपने किसी भी सदस्य को इसके लिए न्यायकर्ता बना सकता है।
अगर हितग्राही परिवार को उसकी हकदारी का अनाज नहीं मिले तो उसे राज्य सरकार से केंद्र द्वारा निर्धारित खाद्य सुरक्षा भत्ता मिलेगा।
6.अन्य प्रावधान
पीडीएस में सुधार
अध्याय 5 : केंद्र व राज्य सरकारें पीडीएस में सुधार के लिए कदम उठाएंगी। जैसे –
- राशन की घर पहुंच सुविधा
- राशन वितरण के एक सिरे से दूसरे सिरे तक कंप्यूटरीकरण
- पात्र हितग्राहियों की पहचान के लिए ‘आधार’ का उपयोग
- रिकार्ड रखने में पारदर्शिता
- राशन दुकानों के लाइसेंस देने में सार्वजिनक संस्थानों को प्राथमिकता
- राशन सामग्री में विविधता
- महिला या महिला समूहों के हाथ में राशन दुकान का प्रबंधन
- और कैश ट्रांसफर, फूड कूपन या लक्षित हितग्राहीमूलक अन्य योजनाओं को शुरू करना ताकि पात्र परिवारों को उनका हक मिले।
सरकार और स्थानीय प्रशासन के कर्त्तव्य
- केंद्र सरकार का प्रमुख कर्त्तव्य राज्य को अनुसूची 1 में दी गई कीमत पर अनाज (या, नहीं दे सके, तो आर्थिक सहायता) देना है, ताकि पात्र परिवारों को अनाज का हक मिल सके। केंद्र सरकार को राज्यों की सलाह से नियम बनाने के व्यापक अधिकार होंगे।
- राज्य सरकारों का प्रमुख काम केंद्र के दिशानिर्देश के अनुसार संबंधित योजनाओं को लागू करना है।
- राज्य सरकारों को भी नियम बनाने के व्यापक अधिकार मिले हैं। वे अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर कानून में हितग्राहियों के लिए निर्धारित हकदारियों और लाभ का दायरा बढ़ा भी सकते हैं।
- स्थानीय प्रशासन और पंचायती राज संस्थाएं अपने क्षेत्रों में कानून के समुचित अमल के लिए जिम्मेदार होंगी। अधिसूचनाओं के जरिए उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारियां भी दी जा सकती हैं।
7.अनुसूचियां
कानून में चार अनुसूचियां हैं (इन्हें अधिसूचनाओं के जरिए संशोधित किया जा सकता है)।
- अनुसूची 1 में पीडीएस के लिए अनाज जारी करने की कीमत है।
- अनुसूची 2 में मध्यान्ह भोजन, टेक होम राशन और संबंधित हकदारियों के लिए ‘पोषण के मानक’ निर्धारित हैं।
- अनुसूची 3 में खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाने के विभिन्न प्रावधान हैं।
- अनुसूची 4 में हर राज्य के लिए खाद्यान्नों का न्यूनतम कोटा है। खासकर उन मामलों में जहां राज्यों को इस कानून से नुकसान उठाना पड़ता हो। इसका मतलब है कि राज्यों को खाद्यान्नों का मौजूदा कोटा जारी रहेगा।