NATIONAL FOOD SECURITY ACT,2013 FULL TEXT

नकद हस्तांतरण; अनाज नहीं नकद खाईये: सचिन कुमार जैन


बड़ी हलचल है। प्रचार हो रहा है हम आधार से आपको पहचान देंगे और अब योजनाओं आपको परेशानी न होगी, क्योंकि अब आपको सेवाओं के बदले नकद राशि देंगे। आप पहचान के लिए विशेष पहचान क्रमांक लीजिए और हम आपको फायदा देंगे। रुकिए! यह भी जान लीजिए कि आधार पंजीयन का मतलब यह नहीं है कि आपको योजनाओं का लाभ मिल ही जाएगा। सच यह है कि अब अपने आपको पात्र साबित करने के लिए यह एक अतिरिक्त अनिवार्यता है। इस अनिवार्यता को पूरा करके आप योजना का लाभ लेंगे और हमारी गुप्तचर व्यवस्था की जद में आ जायेंगे। मुझे पता है, यह बात आपके पल्ले न पड़ी होगी। बिलकुल! बात बहुत ही उलझा दी गयी है। बात यह है कि सरकार अलग-अलग योजनाओं में नकद हस्तांतरण लागू कर रही है और उनका लाभ पाने के लिए विशेष पहचान लेना जरूरी होगा। इस लंबे आलेख में हम इन दोनों विषयों को जोड़ कर देखने की कोशिश करेंगे।

पहले सरकार ने यह कहा था कि हम सार्वजनिक वितरण प्रणाली में नकद हस्तांतरण की व्यवस्था लागू नहीं करेंगे; परन्तु राजस्थान के कोटकासिम में सरकार ने प्रयोग के रूप में यह तय किया कि राशन की दुकान से सस्ते में केरोसीन देने के बजाये हम सब्सिडी की राशि हितग्राहियों के खाते में डाल देंगे। जो निर्धारित राशि हितग्राही देते हैं, वह हितग्राही देते रहेंगे और शेष सरकारी सब्सिडी की राशि सरकार उनके खाते में डालती रहेगी। वे बैंक से इस राशि को निकाल कर दुकानदार को देंगे। हितग्राहियों को बाज़ार भाव से केरोसीन का भुगतान करना तय किया गया। इसका आशय यह है कि हितग्राहियों के बैंक खाते होने चाहिए। बैंक बहुत दूर नहीं होकर लोगों की पंहुच में होना चाहिए। वस्तुस्थिति यह है कि 80 फ़ीसदी हितग्राही राशन की दुकान से तीन महीनों से केरोसीन ही नहीं ले पाए, क्योंकि उनके खाते नहीं खुले थे। और जिनके खुल भी पाए उन्हे राशि के आहरण के लिए 15 से 30 किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ रही थी। ज्यादातर लोगों को सब्सिडी की राशि निकालने के लिए बैंक के तीन से छह चक्कर लगाने पड़े। वहाँ प्रशासन और राशन डीलर हितग्राहियों की समस्याओं को संवेदनशीलता के साथ समझ ही नहीं रहे थे और उन्होंने बिना केरोसीन दिए कई लोगों को वापस भेजा।

एक दूसरा प्रयोग आन्ध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में हुआ। इस जिले में बंदरगाह है, अलग अलग पदों पर 5 भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पदस्थ हैं। वहाँ एक प्रतिबद्ध अधिकारी ने 50 राशन की दुकानों पर होने वाले पायलट के लिए दो साल दिन-रात तैयारी की। जिले के सभी लोगों को आधार पंजीकरण के लिए उन्हे बार-बार जद्दोजहद करना पड़ी, उन्होंने हर राशन कार्ड और हितग्राही की जानकारी वाली प्रबंधन सूचना प्रणाली विकसित की। हर राशन की दुकान पर डिजिटल हितग्राही पहचान मशीन लगी, जिस पर हितग्राही को हर बार अपने हक का राशन लेते समय अपनी उंगली का निशान देना पड़ता है। निशान का मिलान होने पर मशीन ध्वनि के जरिये यह सूचना देती है कि हितग्राही को कितना राशन मिलेगा और उसे कितनी राशि का भुगतान करना है। यह जबरदस्त कौशल और जिम्मेदारी से किया गया जबरदस्त तकनीकी प्रयोग था। पर अनुभव जब आने शुरू हुए तो पता चला कि व्यवस्था सरकार की जवाबदेहिता से ही ठीक हो सकती है, केवल मशीने सब कुछ नहीं सुधार नहीं सकती हैं। पूर्वी गोदावरी में पता चला कि हितग्राहियों के यू आई डी नंबर की गलत एंट्री हो गयी हैं, राशन कार्ड और यू आई डी नंबर का मिलान नहीं हो रहा है। कई मर्तबा मशीन लोगों की उँगलियों के निशान स्वीकार नहीं करती हैं। वहाँ इन कारणों के कारण होने वाली परेशानियों से निपटने के लिए प्रशासन और राशन डीलर संवेदनशीलता के साथ कोशिश करते रहे। फिर भी पता चला कि कई बुजुर्गों की उंगलिओं के निशानों का मिलान नहीं हुआ। लोग नाम आँखों से राशन लिए बिना बार बार घर लौटे। सवाल यह कि मशीन क्या सच में मानवीय परिस्थितियों को महसूस कर सकती है? एक तरह से योजनाओं का लाभ दे रही सूची में से गरीबों की संख्या को कम करने की यह एक नयी योजना है। जिनके आधार पंजीयन नहीं होंगे, उन्हे योजना की सूची में से फर्जी हितग्राही कह कर बाहर निकाल दिया जाएगा, जिनके उँगलियों के निशान का मिलान न होगा, उन्हे फर्जी हितग्राही कह दिया जाएगा।

तीसरा प्रयोग मध्यप्रदेश में अपने आप हो गया। राशन प्रणाली में भ्रष्टाचार दूर करने के लिए आधार पंजीयन सहित फ़ूड कूपन की योजना लागू की गयी। यह पूरा काम एक साथ ठेके पर तीन बड़ी कंपनियों को ठेके पर दे दिया गया। बताया यह गया कि इस काम के लिए ये कम्पनियाँ कोई राशि नहीं ले रही हैं। जबकि वास्तविकता यह थी कि इन कंपनियों से 78 माह का अनुबंध किया गया, इस अवधि के दौरान उन्हे आठ सौ करोड़ की राशि दिया जाना तय हुआ। ईड एन रेड कंपनी ने यह आंकलन किया कि हर माह मध्यप्रदेश में राशन व्यवस्था पर 241 करोड़ रूपए की सब्सिडी दी जाती है, जिसमे से 72 करोड़ रूपए मासिक यानी 864 करोड रूपए का सालाना भ्रष्टाचार होता है। हम केवल 108 करोड़ रूपए लेकर इस भ्रष्टाचार को कम कर सकते हैं। बाद में यह खुलासा हुआ कि इन कंपनियों को ठेका देने में ही भ्रष्टाचार हुआ है। मध्यप्रदेश में भी राशन की व्यवस्था में आधार पंजीयन को अनिवार्य बनाया जा रहा है।

इन अनुभवों से पता चलता है कि जनकल्याणकारी योजनाओं में हो रहे बदलावों की राजनीति को हमें समझना होगा और अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। हम मानते हैं कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि हकों के बदले नकद का प्रावधान नहीं होना चाहिए। और जिन योजनाओं में नकद राशि ही हक है वहाँ यह सुनिश्चित होना चाहिए कि लोगों को बिना विलम्ब और बिना भ्रष्टाचार उनके हक मिलें। इस तरह की प्रक्रिया से बैंकिंग सेवाओं का विस्तार होगा और कल्याणकारी योजनाओं का कम्प्यूटरीकरण होना चाहिए। इन प्रयासों से योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा। आधार प्राधिकरण यह दावा कर रहा है कि आधार पंजीयन से राशन व्यवस्था को जोड़ने से भ्रष्टाचार में कमी आएगी। यह प्राधिकरण यह नहीं जानता है कि बिना आधार के कम्प्यूटरीकरण के द्वारा छत्तीसगढ़ में राशन का भ्रष्टाचार 50 फ़ीसदी से घट कर 10 फीसदी और उड़ीसा में 75 फीसदी से घट कर 30 फीसदी पर आ गया।

वास्तविकता यह है कि राशन प्रणाली में व्याप्त गडबडियों को खत्म करने के लिए व्यवस्थागत सुधार की जरूरत है। गलत गरीबी के आंकलन, राशन डीलरों को कम कमीशन मिलने, सामुदायिक निगरानी न होने, स्थानीय स्तर पर खरीदी और भण्डारण न होने, लोगों की शिकायतों पर कोई कार्यवाही न होने के कारण इसका लाभ लोगों तक नहीं पंहुचता है। इन गडबडियों को दूर करने के बजाये, सरकार ने सोचा है कि आधार पंजीयन और नकद हस्तांतरण को लागू करके भ्रष्टाचार को दूर किया जाए। आप भी सोचिये क्या यह संभव है?

सरकार पर शंका इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि वे अपने कहे पर अडिग नहीं रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में अप्रैल 2001 से लगातार यह मामला उठा रहा है कि राशन व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है। इसी मामले पर न्यायमूर्ति डी एस वाधवा भी अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं। संकट यह है कि जिस योजना में 30 प्रतिशत सरकारी धन भ्रष्टाचार में चला जाता है, उस योजना में इस अपराध को गैर-जमानती अपराध नहीं माना जाता है। निगरानी समितियों में विधायकों को रखा जाता है, जबकि यह बार बार साबित हुआ है कि राजनीतिक दलों की दखलंदाजी के कारण सबसे ज्यादा गडबडी होती है। वास्तव में सरकारों की मंशा ही साफ़ नहीं रही है। उन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थ को हमेशा ज्यादा महत्व दिया है। इसके दूसरी तरफ सरकार की यह नीति रही है कि व्यवस्था सुधारने के बजाये, उसे इतना कमज़ोर हो जाने दो, कि उसे बंद करने के लिए माहौल बन जाए। इससे सरकार खाद्य सब्सिडी को कम कर सकेगी। वास्तव में सस्ते राशन की व्यवस्था का उदाहरण केवल एक योजना के रूप न देखा जाए; वास्तव में यह उदाहरण है कि राज्य की किसानों, गरीबों और वंचित समुदायों के प्रति क्या संवैधानिक जिम्मेदारी है? और क्या राज्य सच में उनके प्रति जवाबदेय है या महज छलावे का काम राज्य करता है और लोगों को छोड़ देता है बाज़ार की आतंक के हवाले।