NATIONAL FOOD SECURITY ACT,2013 FULL TEXT

नकद हस्तांतरण:लाचार स्थिति,लचर व्यवस्था

This is the Hindi translation of the article written  by Anumeha Yadav, published in the Op-ed page of The Hindu


झारखण्ड में मनरेगा के लिए  नकद हस्तांतरण के  पायलट परियोजना  को बहुत ही सीमित  सफलता हासिल हुई है।इसके मुख्य कारण अलग अलग तरह की मानवीय और तकनिकी समस्याए हैं .परियोजना  के प्रारम्भ होने के एक साल बाद भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है

ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि, किसी भी जिले में 80  % लोगों को आधार नंबर मिलने के बाद और उसको बैंक खाते से जोड़ने के बाद ही  जिले में यह कार्यक्रम शरू किया जाएगा।हाला कि झारखंड के पायलट परियोजना दिखाते हैं कि सरकार परियोजना को चलाने की  स्थिति नहीं होने के बावजूद आगे बढ़ते जा रही है .

रामगढ़ जिले में ज्यादातर लाभार्थी रामगढ़ ब्लॉक के दोहाकातु और मरार पंचायत में हैं.रामगढ़ के इन दो ब्लॉक में 63000 से ज्यादा लोगो नें आधार संख्या के लिए नाम दर्ज कराया है।इनमें से मात्र 2312 लोगों का ही  मानचित्रण हुआ है,अर्थात  इनकी आधार संख्या और योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दिए जाने वाले विवरण को एक साथ जोड़ दिया गया है।इन दो पंचायतों में 4791 सक्रिय कार्ड धारकों में से केवल 469 को ही आधार समर्थित  नकद हस्तांतरण द्वारा मनरेगा की  मजदूरी प्राप्त हुई है।रांची से  10-15 किलोमीटर दूर  रातू ब्लॉक के तीन  पंचायतों में तो ये संख्या और भी कम है . 8231 सक्रिय कार्ड धारकों में से मात्र 162 को ही आधार समर्थित नकद हस्तांतरण द्वारा भुगतान किया जा रहा है।

लचर व्यवस्था,लाचार स्थिति

रामगढ़ के जिला अधिकारी अमिताभ कौशल,जिन्हें लगातार दो बार राष्ट्रीय आधार शाषन पुरस्कार से नवाजा गया है,यह स्वीकार करते हैं कि जिला प्रशाषन लाचार है और बैंक बड़ी संख्या में होने वाले लेन देन को सम्हालने में अछम हैं।वर्तमान में  आधार के लिए 8 बैंक हैं, जिनमें  5 को पिछले महीने ही जोड़ा गया था

रामगढ़ और रांची में सभी खातों को सर्विस एरिया बैंक ,बैंक ऑफ़ इंडिया से जोड़ दिया गया है।श्री कौशल कहते हैं "प्रारभ में बहुत सारे लोंग  मनरेगा जॉब कार्ड के बिना ही अपना नाम दर्ज कराने के  लिए आयें।इसलिए अब हमें जॉब कार्ड धारको को खोजने के लिए एक घर से दुसरे घर जाना पड़  रहा है.कुछ जगहों पर  जहाँ लोगो ने बड़े तादाद में अपना नाम दर्ज कराया था, बैंक ऑफ़ इंडिया की कोई भी  शाखा नहीं है, और जहाँ पर  शाखा है वहां पर बहुत ही सीमित  संख्या में लोगो ने अपना नाम दर्ज कराया है" श्री कौशल धड़ल्ले से अपनी अन्य चिंताओं, जैसे कि  बैंक की तकनिकी में सुधार,पहाड़ी इलाकों में इन्टरनेट की सुविधा और नकद पहुंचाने वाले  बैंकिंग कौरेसपौनडेंट  की उपलब्धता,सुरछा और सत्यनिष्ठा को भी सामने रखते हैं.

दोहाकतु के पंचायत भवन में, जहां पर ज्यादातर मनरेगा  की मजदूरी का भुगतान होता है, बैंकिंग कौरेसपौनडेंट,राजेश कुमार काफी जल्दिबाजी  में लाभार्थियों  के ऑनलाइन फ़ार्म को भर रहे हैं उन्हें इन फार्म्स को 15 दिसंबर तक जमा करने को कहा गया है।लेकिन इसमें उन्हें काफी व्यावधान का सामना करना पड़  रहा है।वे कहते हैं "बिजली दोपहर में ही आई थी।पिछले हफ्ते दो दिन तक बिलकुल  भी बिजली नहीं थी और सर्वर की भी काफी समस्या हुई थी।लेकिन 3 बजे जब वो मजदूरी के लिए  कतार में खड़े लोगों को, जिन्होंने मनरेगा के अंतर्गत ज़मीन समतल करने का काम किया है, नकद भुगतान देना  शरू करते हैं तब  चिंता तो दिखती है पर एक तरह का उत्साह भी स्पष्ट नजर आता है।

निराशा

उन 7 लोगों में जो अपनी उँगलियाँ स्कैन कराने आये हैं,माइक्रो ए.टी.एम, जो श्री कुमार संचालित करते हैं, केवल चार उँगलियों की ही पहचान कर पाती है।वे 200 से 300 रुपये नकद उनको देते हैं जो उन्होंने सुबह बैंक से निकाल था।दो मजदूरों के लिए यह माइक्रो ए.टी.एम लगातार  ही गलतियों को दोहराता है।।एक मजदूर के आधार और बैंक खाते को अभी तक नहीं जोड़ा गया है।चार पेंशन लाभार्थियों में से तीन  अपना नकद भुगतान एक घंटे में ले लेते हैं। 

दशय बेदिया, उजला कुर्ता  और धोती पहना हुआ  एक कमजोर खेत मजदूर अपनी अलग अलग उँगलियों को रखकर  8 बार इस उम्मीद से  कोशिश करता है कि शायद  कोई न कोई ऊँगली से काम हो जाए और फिर वो ऑफिस से बाहर जाकर उसे रगड़ता है और पानी से धोता है  फिर वापस आकर 5 बार और कोशिश करता है लेकिन हर बार उसे निराशा हासिल  होती है  .श्री कुमार उसे चार दिन बाद आने को कहते हैं और ये भी निर्देश  देते हैं कि  सोने से पहले वो अपनी उँगलियों में बोरोप्लस या वैसलीन लगा ले। ऐसे में यह सवाल  उठता है कि  क्या नकद का  भुगतान  और  आसानी से घर या पंचायत स्तर पर स्मार्ट कार्ड द्वारा नहीं किया जा सकता।जिसमें ना ही  इंटरनेट की जरूरत हो न ही यु.आई.डी  जैसे केंद्रीकृत विशाल आंकड़ो की, जिसमें  उन लोगों का शामिल होना मुश्किल हो जाता  है जो पहली बार अपना नाम दर्ज नहीं करवा पाए  थें।

पिछले कुछ महीनो से दोहाकतु में इतने बड़े संख्या में नौकरशाह,अधिकारी और पत्रकार आ रहे हैं कि सरपंच कलावती देवी पंचायत भवन में इन वी.आई.पी के लिए बाज़ार से खरीदी, शहर में मिलने वाली पानी रखने लगी हैं। दुसरे पायलट प्रोजेक्ट पतरातू में अधिकारियों के दौरे के दौरान भी चीजें इतनी सुगम्य नहीं हुई हैं।2 अक्तूबर से कुछ दिनों पहले झारखंड के मुख्या सचीव  को आधार समर्थित नकद हस्तांतरण द्वारा तिगरा पंचायत में पेंशन देना था  तब बैंक के अधिकारी और बैंक कौरेस्पौन्देंत  ने काफी हड़बड़ी में अस्त व्यस्त तरीके से 45 लाभार्थियों का ऊँगली के छाप  द्वारा सत्यापन करने की कोशिश की  थी जिसमें मात्र 9  का ही सत्यापन हो पाया।

2 अक्टूबर से इन 9 लोगों को भी आधार समर्थित नकद हस्तांतरण द्वारा भुगतान नहीं किया गया है। उनकी मजदूरी को उनके पुराने डाक घर के खाते में ही हस्तांतरित  कर दिया गया है। अगर इन्हें अभी भी पेंशन मिल रहा है तो इसका एक मात्र कारण यह है कि सरकार ने पुराने पासबुक का उपयोग कर डाक घर में जमा राशी के निकासी का विकल्प खुला रखा है।

तुरीयो पंचायत,रांची के बैंकिंग कौरेसपौनडेंट तुलसी कोएरी  का कहना है "लगभग आधे मनरेगा मजदूरों की ऊँगली के छाप  का सत्यापन नहीं हो पा रहा है।हो सकता है उनकी उंगलियों के छाप में कोई परिवर्तन आ गया हो। मार्च के महीने में मैंने पेंशन लाभार्थियों के पहचान पत्र को बैंक ऑफ इंडिया में जमा कराया था ताकि उनका खाता खुल सके  और पासबुक मिले।लेकिन जून के महीने में बैंक के प्रबंधक बदल गयें और बैंक के अधिकारियों ने बताया कि सारे दस्तावेज खो गए हैं .मैंने फिर से सितम्बर के महीने में दस्तावेजों को जमा किया,पर अभी तक लोग पासबुक का इन्तजार कर रहे हैं "

नजदीक के ही तिगरा पंचायत के बैंकिंग कौरेसपौनडेंट महमूद आलम का कहना है कि 383 लोगों में से जिनका आधार द्वारा मानचित्रण किया गया था,केवल 102 को पासबुक मिला है।और उनके लिए मजदूरी लेना मुश्किल हो जाएगा, अगर सत्यापन और इंटरनेट की समस्या से जूझते हैं

कहाँ हैं मजदूरी?

न हीं श्री कोयरी और न हीं श्री आलम को नवम्बर से 2100 रुपये का  मासिक वेतन भुगतान किया जा रहा है। इन्हें  यूनियन टेलीकॉम लिमिटेड(यु.टी.एल) द्वारा, जिसे बैंक ऑफ़ इंडिया ने यह काम सौंपा हुआ है,बैंकिंग कौरेसपौनडेंट के काम पर रखा गया है.जिला अधिकारी श्री कौशल के जून में  हस्तछेप  के बाद ही रामगढ़ के बैंकिंग कौरेसपौनडेंट श्री कुमार को 4 महीने के वेतन का भुगतान किया गया।यहाँ तक कि उन्हें भी छह महीने से वेतन नहीं मिला है.

श्री कोएरी  कहते हैं "मैंने  हर महीने 400 रुपये पेट्रोल पे खर्चा किया है।अक्तूबर में प्रधानमन्त्री के वीडियो कॉन्फ्रेंस में  हम में से तीन लोगों को रातू से भेजा गया था।उन तीन दिनों में हमें 2 लाख से ज्यादा पैसे का भुगतान करना पड़ा ।जब हमने वेतन की माँग की तो यु.टी.आई ने कहा कि  अगर काम पसंद नहीं है तो छोड़ सकते हो.क्या आप उनसे हमारे तनख्वाह के बारे में पूछ सकते हैं?"